________________ છ૯૨ जैनतत्वादर्श का कहना सुन के विचार करने लगा कि ऐसे उपशमप्रधान साधु होते हैं, इस वास्ते यह असत्य नहीं बोलते हैं / इस से मन में संशय हो गया / तब उपाध्याय को पूछा कि तत्व क्या है ! तब उपाध्यायने कहा कि चार वेदों में जो कथन करा है, सो तत्त्व है। क्योंकि वेदों के सिवाय और कोई तत्त्व नहीं है। शय्यंभवने कहा कि तू दक्षिणा के लोभ से मुझ को तत्त्व नहीं बतलाता है, क्योंकि रागद्वेष रहित, निर्मम, निष्परिग्रह, शांत, दांत, महामुनियों का कहना झूठा नहीं होता है। और तू मेरा गुरु नहीं, तैने तो जन्म से इस जगतू को ठगना ही सीखा है, इस वास्ते तू शिक्षा के योग्य है / इस वास्ते या तो मुझे तत्व कह दे, नहीं तो तलवार से तेरा शिर छेद करूंगा। ऐसे कह के जब मियान से तलवार काढी, तब उपाध्यायने प्राणांत कष्ट देख के कहा कि, हमारे वेदों में भी ऐसे लिखा है, और हमारी आम्नाय भी यही है कि, जब हमारा कोई शिर छेदे, तब तत्त्व कहना, नहीं तो नहीं कहना / तिस वास्ते मैं तुम को तत्त्व कह देता हूं इस यज्ञस्तंभ के हेठ अहंत की प्रतिमा स्थापन करी है, और नीचे ही तिसको प्रच्छन्न हो के पूजते हैं, तिसके प्रभाव से यज्ञ के सर्व विघ्न दूर हो जाते हैं, जेकर यज्ञस्तंभ के नीचे अहंत की प्रतिमा न रक्खें, तो महातपा सिद्धपुत्र और नारद ये दोनों यज्ञ को विध्वंस कर देते हैं।