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________________ बादश परिच्छेद 471 पांच सौ चोरों के सहित दीक्षा श्रीजंबूस्वामी के साथ लीनी / इत्यादि जंबूजी का और प्रभवजी का अधिकार जंबूचरित्र तथा परिशिष्ट पर्वादि ग्रन्थों से जान लेना / प्रभवस्वामी तीस वर्ष गृहस्थ पर्याय, चौतालीस वर्ष व्रतपर्याय, तथा एकादश वर्ष युगप्रधान पदवी, सर्व पचासी वर्ष की आयु पूरी करके श्रीमहावीर से पचहत्तर वर्ष पीछे स्वर्ग गया। 4. श्रीप्रभवस्वामी के पाट ऊपर श्रीशय्यमव स्वामी बैठे। जिनोंने मणक साधु के वास्ते दशवै. श्री गव्यमय कालिक सूत्र बनाया / तिनकी उत्पत्ति ऐसे स्वामी है। एक समय प्रभवस्वामीने रात्रि में विचार करा कि मेरे पाट ऊपर कौन बैठेगा। पीछे ज्ञानबल से अपने सर्वसंघ में पाट योग्य कोई न देखा, तब पर दर्शनियों को ज्ञानवल से देखने लगा। तव राजगृह नगर में यज्ञ करते हुये शखभव भट्ट को अपने पाट योग्य देखा / पीछे प्रभवस्वामी विहार करके सपरिवार राजगृह नगर में आये / वहा दो साधुओ को आदेश दिया कि तुम यज्ञपाडे में जाकर भिक्षा के वास्ते धर्मलाभ कहो, और यज्ञ करनेवालों को ऐसे कहौ-" अहो कष्टमहो कष्टं तत्वं विज्ञायते न हि " / तब तिन साधुओंने पूर्वोक्त गुरु का कहना सर्व किया / जव ब्राह्मणोंने " अहो कष्ट " इत्यादि सुना, तब तिस यज्ञपाडे में शय्यंभव ब्राह्मणने यज्ञ-दीक्षा लीनी थी / तिसने यज्ञपाडे के दरवाजे में खडे हुए 'अहो कप्टं' इत्यादि मुनियों
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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