________________ 470 जैनतत्त्वादर्श विच्छेद हो गई / तिसका नाम लिखते हैं-१. मनःपर्याय ज्ञान. 2 परमावधि ज्ञान, 3 पुलाकलब्धि, 4. आहारक शरीर, 5. क्षपक श्रेणि, 6. उपशमश्रेणि, 7. जिनकल्पमुनि की रीति, 8. परिहारविशुद्धिचारित्र, तथा सूक्ष्मसंपराय, और यथाख्यात, यह तीन तरे के संयम, 9. केवलज्ञान, 10. मोक्ष होना-यह दश वस्तु विच्छेद हो गई। श्रीमहावीर भगवंत के केवली हुये पीछे जब चौदह वर्ष बीते; तव जमाली नामा प्रथम निन्हव हुआ, और सोलां वर्ष पीछे तिष्यगुप्त नामा दूसरा निन्हव हुआ। श्रीजंबूस्वामी की आयु अस्सी वर्ष की थी। 3. जम्बूस्वामी के पाट ऊपर प्रभवस्वामी बैठे, तिन ___ की उत्पत्ति ऐसे है। विंध्याचल पर्वत के श्रीप्रभवस्वामी पास जयपुर नामा पत्तन था, जिसका विध्य नामा राजा था / तिसके दो पुत्र थे / एक बड़ा प्रभव, दूसरा छोटा प्रभु / विंध्य राजाने किसी कारण से छोटे पुत्र प्रभु को राजतिलक दे दिया, तब बड़ा बेटा प्रभव गुस्से हो कर जयपुर पचन से निकल कर विंध्याचल की विषम जगा में गाम वसा कर रहने लगा, और खात्रखनन, चंदिग्रहण, रस्ते में लूटना आदि अनेक तरें की चोरियों से अपने परिवार की आजीविका करता था / एक दिन पांच सौ चोरों को लेकर राजगृह नगर में जम्बूजी के घर को लूटने आया, तहां जंबूस्वामीने तिसको प्रतिबोध करा / तब तिसने