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________________ द्वादश परिच्छेद ज्ञानी पाट ऊपर नहीं बैठता है / जेकर बैठे तो तीर्थकर का शासन दूर होजावे, यह वात कमी हो नहीं सकती कि अनादि रीति को केवली भंग करे, इस वास्ते श्री गौतमजी गद्दी ऊपर नहीं बैठे और सुधर्मास्वामी बैठे। श्रीसुधर्मास्वामी पचास वर्ष तो गृहस्थावास में रहे, और तीस वर्ष श्रीमहावीर भगवंत की चरणसेवा करी / जब श्रीमहावीर का निर्माण हुआ तिस पीछे बारा वर्ष तक छद्मस्थ रहे, और आठ वर्ष केवली रहे। क्योंकि श्रीमहावीर अहंत के पीछे केवली हो कर बारा वर्ष तक श्रीगौतमजी जीते रहे / और श्रीगौतमजी के निर्वाण पीछे श्रीमुघर्मास्वामीजी को केवलज्ञान हुआ, केवली हो कर आठ वर्ष जीते रहे / श्रीसुधर्मास्वामीजी की सब आयु एक सौ वर्ष की थी, सो श्रीमहावीरजी के वीस वर्ष पीछे मोक्ष गये। 2. श्रीसुधर्मास्वामी के पाट ऊपर श्रीजंबूस्वामी बैठे / सो राजगृहनगर का वासी श्रीऋषभदत्त श्री जम्बूस्वामी और श्रेष्ठी की धारिणी नामा स्त्री से जन्मे थे। दश विच्छेद निनानवे क्रोड़ सोनये और आठ स्त्रियों को __छोड़ कर दीक्षा लेता भया / सोलो वर्ष गृहस्थवास में रहे, वीस वर्ष व्रतपर्याय, और चौतालीस वर्ष केवलपर्याय पाल के श्रीमहावीर के निर्वाण पीछे चौसठमे वर्ष मोक्ष गये। यह श्रीजम्बूस्वामी के पीछे भरत क्षेत्र में दश बातें
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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