________________ 468 जैनतत्त्वादर्श इनका यह अर्थ तेरी बुद्धि में भासन होता है कि अग्निहोत्र जो है, सो जीवहिंसा संयुक्त है, और जरा मरण का कारण है / अरु वेद में अग्निहोत्र निरंतर करना कहा है, तब ऐसा कौनसा काल है कि, जिसमें मोक्ष जाने का कर्म करें। इस वास्ते आत्मा को मोक्ष कदापि नहीं हो सकता है। अरु दूसरी श्रुति मोक्षप्राप्ति भी कहती है। इस वास्ते संशय हुआ है। इसका जब भगवान्ने उत्तर दे के निशंक करा, तब तीन सौ छात्रों के साथ दीक्षा लीनी / यह श्री महावीर भगवंत के वैशाख शुदि दशमी के दिन मध्यपापानगरी के महासेन वन में 4400 शिष्य हुये। तिस पीछे राजपुत्र, श्रेष्ठिपुत्रादि तथा राजपुत्री, श्रेष्ठिपुत्री, राजा की रानी आदिकने दीक्षा लीनी। तथा जब भगवंत श्रीमहावीरजी पावापुरी में मोक्ष गये, तिस ही रात्रि में इन्द्रभूति अर्थात् श्री सुधर्मा- गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ / तब स्वामी इन्द्रोंने निर्वाण महोत्सव करा, और सुधर्मा स्वामीजी को श्रीमहावीरस्वामीजी की गद्दी ऊपर बिठाया / श्रीगौतमजी को गद्दी इस वास्ते न हुई कि, केवलज्ञानी पुरुष पाट ऊपर नहीं बैठता है। क्योंकि केवली तो जो पूछे उसका उत्तर अपने ज्ञान से ही देता है, परन्तु ऐसा नहीं कहता है कि मैं अमुक तीर्थकर के कहने से कहता हूं। इस वास्ते केवल