________________ द्वादश परिच्छेद 463 इन सर्व श्रुतियों का भगवान् ने अर्थ करके संशय दूर करा, तव अपने पांच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा लीनी / तिस पीछे छठा मंडिपुत्र आया। तिसके मन में यह संशय था कि, वंध मोम है या नहीं है ? यह संशय भी विरुद्ध श्रुतियों से हुआ है, सो श्रुतियां यह है म एप विगुणो विभुर्न बध्यते संसरति वा न सुच्यने मोचयति वान वा एप बाह्यमस्यंतर वा वेद इत्यातीनि / इस श्रुति का ऐसा अर्थ तेरे मन में भासन होता है'एष अधिकृतजीयः' अर्थात् यह जीव जिसका अधिकार है, 'विगुणः ' अर्थात् सत्वादि गुण रहित, सर्वगत-सर्वव्यापक पुण्य पाप करके इस को बंध नहीं होता है, और संसार में भ्रमण भी नहीं करता है, और कर्मों से छूटता भी नहीं है, बंध के अभाव होने से दूसरों को कर्म बंध से छुड़ाता भी नहीं है / इस कहने से आत्मा अकर्ता है, सोई कहते हैं:यह पुरुष अपनी आत्मा से वाहिर महत् अहंकारादि और अभ्यंतर स्वरूप अपना जानता नहीं। क्योंकि जानना ज्ञान से होता है, और ज्ञान जो है, सो प्रकृति का धर्म है, और प्रकृति अचेतन है, इस वास्ते बंध मोक्ष नहीं। इस श्रुति से बंध मोक्ष का अभाव सिद्ध होता है / अब इस से विरुद्ध श्रुति यह है।