________________ 461 द्वादश परिच्छेद से देह से न्यारा जीव-आत्मा सिद्ध नहीं होता है। और इस श्रुति से विरुद्ध यह श्रुति है सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धो यं पश्यति धीरा यतयः संयतात्मान इत्यादि। इस श्रुति से देह से भिन्न आत्मा सिद्ध होती है, इस वास्ते तुझ को संशय है। पीछे भगवान्ने यह सर्व संशय दूर करा / तब तीसरे वायुभूतिने भी अपने पांच सौ विद्यार्थियों के साथ दीक्षा लीनी / वायुभूति की तरें शेष आठ गणधर क्रम से आये, तिस में चौथा अव्यक्तजी आया तिनके मन में यह संशय था कि पांचभूत हैं कि नहीं ! यह संशय विरुद्ध श्रुतियों से हुआ। वे परस्पर विरुद्ध श्रुतियां यह हैं स्वमोपम वै सकलमित्येष ब्रह्माविधिरंजसा विज्ञेय इत्यादीनि / तथा इस से विरुद्ध यह श्रुति हैद्यावापृथिवी जनयन् देव इत्यादि। तथापृथिवीदेवता, आपोदेवता, इत्यादीनि /