________________ द्वादश परिच्छेद 459. पुरुष एवेदं नि सर्व यद्भूतं यच्च माध्यं, उतामृतत्वस्येशानो यदन्ननाऽतिरोहति / यदेजति यन्नजति यहरे यदु अंतिके यदंतरस्य सर्वस्य यदुत सर्वस्यास्य वायत इत्यादि। इस से विरुद्ध यह श्रुति है:पुण्यः पुण्येन कर्मणा पापः पापेन कर्मणा, इत्यादि / और इन का अर्थ तेरे मन में ऐसा भासन होता है कि 'पुरुष' अर्थात् आत्मा / 'एव' शब्द अवधारण के वास्ते है, सो अवधारण कर्म और प्रधानादिकों के व्यवच्छेद वास्ते है। 'इदं सर्व' अर्थात् यह सर्व प्रत्यक्ष वर्तमान चेतन अचेतन वस्तु / 'ग्नि' यह वाक्यालंकार में है / 'यद् भूतं यह भाव्यं' अर्थात् जो पीछे हुआ है और आगे को होवेगा' जो मुक्ति तथा संसार सो सर्व पुरुष आत्मा ब्रह्म ही हैं। तथा 'उतं' शब्द अपिशब्द के अर्थ में है, और अपि शब्द समुच्चय अर्थ में है / ' अमृतत्त्वस्य'-अमरणभाव का अर्थात् मोक्ष का, 'ईशानः '-प्रभु अर्थात् स्वामी ( मालक ) है। 'यदिति यच्चेति' च शब्द के लोप होने से यदिति बना, इसका अर्थ जो अन्न करके वृद्धि को प्राप्त होता है / ' यदेजति यन्नेजति'-जो चलता है ऐसे पशु आदिक और जो नहीं चलता है ऐसे पर्वतादिक / और 'यद्रे'-जो दूर