________________ द्वादश परिच्छेद 455 यज्ञपाड़े को छोड़ के भगवान् के चरणों में जाकर हाजिर हुये / तथा और लोक भी श्रीमहावीर भगवंत का दर्शन करके और उपदेश सुन के गौतमादि पंडितों के आगे कहने लगे कि आज इस नगर के बाहिर सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान् आये हैं। न तो उनके रूप की कोई तारीफ कर सकता है, अरु न कोई उनके उपदेश से संशय रहता है, और लाखों देवता जिनों के चरणों की सेवा करते हैं / ताते हमारे बड़े भाग्योदय है, जो एसे सर्वज्ञ अरिहंत भगवंत का हमने दर्शन पाया / जब गौतमजीने सुना कि सर्वज्ञ आया है, तब मन में ईर्ष्या की अग्नि भड़की अरु ऐसे कहने लगा कि, मेरे से अधिक और सर्वज्ञ कौन है ? मैं आज इसका सर्वज्ञपना उड़ा देता हूं। इत्यादि गर्व संयुक्त भगवान् श्रीमहावीर के पास पहुंचा, और भगवान् को चौतीस अतिशय संयुक्त देखा / तथा देवता, इन्द्र, मनुष्यों से परिवृत देखा / तब बोलने की शक्ति से हीन हुवा 2 भगवंत के सन्मुख जाके खड़ा हो गया। तव भगवंतने कहा, हे गौतम इन्द्रभूति ! तू आया ! तब गौतमजीने मन में विचारां कि मेरा नाम भी ये जानते हैं, मैं तो सर्व जगे प्रसिद्ध हूं, मुझे कौन नहीं जानता ! इस वास्ते मैं इस बात में कुछ आश्चर्य और इन को सर्वज्ञ नहीं मानता हूं। किंतु मेरे मन में जो सशय है, तिसको यदि दूर कर देवें, तो मैं इन को सर्वज्ञ मानूं। तब भगवंतने कहा, हे गौतम ! तेरे मन में यह संशय है