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________________ 454 जैनतत्त्वादर्श . हुये, शरीरादि चार कर्म की सर्व उपाधि छोड़ के निर्वाण हुये-मोक्ष पहुंचे। तिस समय में गौतमस्वामी और सुधर्मास्वामी यह दो बडे शिष्य जीते थे, शेष नव बडे शिष्य तो श्रीमहावीरजी के जीते हुये ही एक मास का अनशन करके केवलज्ञान पा के मोक्ष चले गये थे। यह ग्यारह ही बडे शिष्य जाति के तो ब्राह्मण थे, चार वेद और छ वेदांग आदि सर्व शास्त्रों के जानकार थे, इन के चौतालीस सों (4400) विद्यार्थी थे। इनका सम्बन्ध ऐसे है। __जब भगवंत श्रीमहावीरजी को केवलज्ञान हुआ, तिस अवसर में मध्यपापा नगरी में सोमिल नामा गौतम और ब्राह्मणने यज्ञ करने का आरम्भ करा था, संशयनिवृत्ति और सर्व ब्राह्मणों में श्रेष्ठ विद्वान् जान कर ___ इन पूर्वोक्त गौतमादि ग्यारह ही आचार्यों को बुलाया था। तिस समय तिस यज्ञपाड़ा के ईशान कूण में महासेन नामा उद्यान में श्रीमहावीर भगवंत का समवसरण रल सुवर्ण रौप्यमय, कम से तीन गढ़ संयुक्त देवों ने बनाया / तिसके बीच में बैठ के भगवंत श्रीमहावीरस्वामी उपदेश करने लगे। तब आकाश मार्ग के रास्ते सेंकडों विमानों में बैठे हुए चार प्रकार के देवता भगवंत श्रीमहावीर के दर्शन और उपदेश सुनने को आते थे। तब तिन यज्ञ करनेवाले ब्राह्मणोंने जाना कि, यह देव सब हमारे करे हुये यज्ञ की आहुतियां लेने आये हैं। इतने में देवता तो
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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