________________ द्वादश परिच्छेद 453 हुये हैं। क्योंकि जगत् में प्रसिद्ध है कि कर्ण राजाने श्राद्ध चलाये हैं। सो इसी कोणिक राजा का नाम लोगोंने कर्ण राजा करके लिखा है। तथा अनिकासुत जैनाचार्य अत्यंत वृद्ध को गंगा नदी उतरते केवलज्ञान हुआ और जहां प्रयाग है, प्रयागतीर्य तहां शरीर छोड़ के मोम हुआ। तिस जगे देवताओंने तिस मुनि की महिमा करी, तव से प्रयाग तीर्थ की मानता चली, अर्थात् प्रयाग तीर्थ की उत्पत्ति हुई। महावीरम्वामी के वक्त में जो स्वरूप राजादि व्यवहारों का था तथा जैनमत का जहां तक विस्तार था, सो आवश्यक सूत्र, वीरचरित्र तथा वृहत्कल्पादि शास्त्रों से जान लेना। ___ तथा श्रीमहावीर के समय में राजगृह नगरी का राजा श्रेणिक हुआ। तिसके पीछे कोणिक हुआ, जिसने श्रेणिक के मरने से पीछे चंपा नगरी को अपनी राजधानी बनाया। तिसका बेटा उदायी हुआ, जिसने कोणिक के मरे पीछे उदासी से चंपा को छोड़ के पाटलीपुत्र( पटना ) नगर वसा के अपनी राजधानी बनायी। श्रीमहावीर भगवंत विक्रम संवत् से 477 वर्ष पहिले पावापुरी नगरी में हस्तपाल राजा की पुरानी राजसभा में बहत्तर वर्ष की आयु भोग के कार्तिक वदि अमावास्या की रात्रि के पिछले प्रहर में पद्मासन अर्थात् चौकडी मारे