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सप्तम परिच्छेद इसका समाधान ऐसा है, कि प्रथम जो कथन है, सो बाहुल्य की अपेक्षा से है । क्योंकि बहुत तारा-मंडल ऐसा है, जो मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देता है, अरु कितनेक ऐसे हैं, जो ध्रुव के ही आसपास चक्र देते हैं। यह समावान, पूज्य श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजीने संघयण तथा विशेषणवती ग्रन्थ में लिखा है कि मेरु पर्वत के चारों ओर चार ध्रुव हैं, अरु उन चारों ध्रुवों के पास ऐसे ऐसे तारे हैं, जो सदा उन चारों ध्रुवों के ही आसपास चक्र देते हैं । इस से यह सिद्ध हुआ कि जो शास्त्र का कहना है, सो बाहुल्य से अरु किसी अपेक्षा करके संयुक्त है। अरु किसी जगे स्थूल व्यवहार नय के मत से कथन है, परन्तु सूक्ष्म अधिक न्यूनता की विवक्षा नहीं करी है। इसी तरें सौ वर्ष से अधिक आयु जो पंचम काल में कही है, सो बाहुल्य की अपेक्षा तथा आर्य खंड अर्थात् मध्य खंड की अपेक्षा से है। जे कर किसी पुरुष की १५०, २००, २५० इत्यादि वर्षों की आयु हो जावे, तो मन में जिनवचन की शंका न करनी–कि क्या जाने जिनवचन सत्य हैं कि जूठ हैं ? अर्थात् ऐसा विकल्प मन में नहीं करना, क्योंकि शास्त्र का आशय अति गम्भीर है, अरु ऐसा गीतार्थ कोई गुरु नहीं है, जो यथार्थ बतला देवे। ___ इस आयु के कहने का यह समाधान है, कि भगवान् श्री महावीर के निर्वाण पीछे ५८५ वर्ष के लगभग जैन मत