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जैनतरवादर्श
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तथा अढ़ाई सौ वर्ष की आयु वाले भी मोट्टानादि किसी देश में मनुष्य होते हैं, तब दृढ़ श्रद्धावाले भोले जीव तो कदापि किसी का कहना नहीं मानते हैं, चाहे बड़ी आयुवाला मनुष्य उनके सन्मुख भी खड़ा कर दिया जावे, तो भी वे झूठ ही मानेंगे। क्योंकि वे जानते हैं, कि जो हमारे जिनेन्द्र देव का कथन है, सो कदापि झूठा नहीं है । परन्तु जिन को जैन मत की दृढ़ श्रद्धा नहीं है, वे कुछ सांसारिक विद्या में निपुण हैं, चाहे जैन मत वाले ही हैं, उनके मन में अवश्य शंका पड़ जायगी । क्योंकि उन्हों ने भी सर्व जैन मत के शास्त्र सुने नहीं हैं। शास्त्र में जो कथन है, सो सापेक्षक है, बाहुल्य करके कहा हुआ है । सो कथंचित् जो अन्यथा होवे, तो आश्चर्य नहीं । क्योंकि बहुत से शास्त्रों में लिखा है, कि ज्योतिष - चक्र अर्थात् तारा - मंडल है, सो सर्व तारे मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते हैं । यह बात सर्व जैन मानते हैं । परन्तु ध्रुव का तारा कहीं भी नहीं जाता है, अरु तारे -- सप्त ऋषि रूढ़ि (लोक) में प्रसिद्ध हैं, जिन को बालक मंजी, पहरेदार, कुत्ता और चोर कहते हैं। तथा और भी कितन नेक तारे ध्रुव के पार्श्ववर्ती हैं। वे सर्व घ्रुत्र की प्रदक्षिणा देते हैं । परन्तु मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा नहीं देते हैं । यह बात हमने आंखों से देखी है, अरु औरों को दिखा सकते हैं। तो फिर प्रथम जो शास्त्रकार ने कहा था, कि सर्व तारे मेरु की प्रदक्षिणा देते हैं, यह कहना जैनी क्योंकर सत्य मानते हैं ?
ध्रुव के पास जो