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सप्तम परिच्छेद
१९ सम्मत आचार्य, संघयण नामा पुस्तक में तथा विशेषणवती ग्रंथ में लिखते हैं, कि कोई एक आचार्य कोड़ी शब्द को एक क्रोड़ का वाचक नही मानते हैं, किंतु संज्ञान्तर मानते हैं। क्योंकि अब वर्तमान काल में भी वीस को कोड़ी कहते हैं। तथा सौराष्ट्र देश अर्थात् सोरठ देश में अब वर्तमान काल में भी पांच आने को एक कोड़ी कहते है । यह जैसे कोड़ी शब्द मैं मतांतर है, ऐसे ही शत, सहस्र शब्द भी किसी संज्ञा के वाचक होंवें, तो कुछ दोष नहीं। तथा शत्रुजय तीर्थ में जहां मुनि मोक्ष गये हैं, तहां भी पांच कोड़ी आदि शब्दों की कोई संज्ञाविशेष है । ऐसे ही छप्पन कुल कोड़ी यादव कहते हैं तहां भी यादवों के छप्पन कुलों की कोड़ी कोई संज्ञा विशेष है । इसी तरह सर्व जगे शास्त्रों में चक्रवर्ती की सेना तथा कोणिक, चेटक राजाओं की सेना में जो कोड़ी, शत अरु सहस्र शब्द हैं, सो संज्ञा विशेष के बाचक मालूम होते हैं । इस वास्ते सर्व शब्दों को सर्व जगे एक सरीखा अर्थ मानना युक्त नहीं । इस कथन में पूज्य श्री जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण पूरे साक्षी देनेवाले है ।
तथा कितनेक भव्य जीवों ने सामान्य प्रकार से ऐसा सुन रक्खा है, कि पांच में आरे में पंचम काल की उत्कृष्ट एक सौ बीस वर्ष की आयु है । जब वो जीव किसी अंग्रेज़ तथा और किसी के मुख से सुनते हैं, कि डेढ़ सौ तथा दो सौ,
मनुष्यायु