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जैनतस्वादर्श
भगवान् की पूजा वास्ते खर्च करूं । अपने धन के अनुसार प्रतिवर्षं धूप, अगरबती, कर्पूर चढ़ाऊं । वर्ष में इतनी अष्ट प्रकारी, सतरा प्रकारी पूजा कराऊं तथा करूं। वर्ष में इतना रुपया साधारण द्रव्य में खरचूं | प्रतिवर्ष पूजा वास्ते इतना द्रव्य खरचूं | प्रतिदिन एक नवकारवाली अर्थात् माला, पंच परमेष्ठि-मंत्र का मोक्ष निमित्त जाप करूं । जेकर कोई दिन जाप न होवे, तो अगले दिन दूना जाप करूं, परंतु रोगादि के कारण आगार है । प्रतिदिन समर्थ होने पर नमस्कार सहित अर्थात् दो घड़ी दिन चढ़े तक चार आहार का प्रत्याख्यान करूं । रात्रि में दुविहार प्रत्याख्यान करूं । परन्तु रास्ते चलते ( सफर में ) रोगादि के कारण से न होवे, तो आगार । वर्ष प्रति इतना साधर्मिवात्सल्य करूं --- साधर्मी जिमावुं । इस रीति से सम्यक्त्व पालू अरु सम्यक्त्व के पांच अतिचार टालू। सो पांच अतिचार कहते हैं ।
प्रथम शंका अतिचार - सो जिनवचन में शंका करनी । क्योंकि जिनवचन बहुत गंभीर हैं, और शङ्का अतिचार तिनका यथार्थ अर्थ कहनेवाला इस काल में कोई गुरु नहीं । और शास्त्र जो है, सो अनंतनयात्मक है । तिसकी गिनती तथा संज्ञा विचित्र तरह की है। कई एक जगे तो कोड़ी शब्द क्रोड़ का वाचक है, और किसी जगे रूढ़ वस्तु (२० संख्या) का वाचक है । क्योंकि श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण सर्व संघ के