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सप्तम परिच्छेद अथ सम्यक्त्व की करनी लिखते हैं। नित्य श्योगवाई
के मिलने पर, और शरीर में कोई सम्यक्त्वधारी विन न होवे, तब जिनप्रतिमा का दर्शन के कर्तव्य करके पीछे से भोजन करे । जेकर जिन
प्रतिमा का योग न मिले, तो पूर्वदिशा की तरफ मुख करके वर्तमान तीर्थंकरों का चैत्यवंदन करे, अरु जेकर रोगादि किसी विन से दर्शन न होवे, तो जिसके आगार है, उसका नियम नहीं टूटता है । और भगवान् के मंदिर में मोटी दश आशातना न करे । दश आशातना के नाम कहते हैं:-१. तंबोल, पान, फल प्रमुख सर्व खाने की वस्तु भगवान् के मंदिर में न खावे । २. पानी, दूध, छाछ, अर्क प्रमुख पीचे नहीं। ३. जिनमंदिर में बैठ के भोजन न करे । ४. जूती प्रमुख मंदिर के अंदर न लावे । ५. स्त्री आदि से मैथुन सेवे नहीं। ६. जिनमंदिर में शयन न करे। ७. जिनमंदिर में थूके नही । ८. जिनमंदिर में लघुशंका न करे । ९. जिनमंदिर में दिशा न जावे । १०. जिनमंदिर में जूआ, चौपट, शतरंज प्रमुख न खेले। ये दश आशातना टाले, तथा उत्कृष्टी चौरासी आशातना वर्जे। तथा एक मास में इतना फूल केसर आदि चढ़ाऊँ। एक मास में इतना घृत चढाऊँ । एक वर्ष में इतना अंगलहना चढाऊ । वर्ष में इतना केसर, इतना चंदन, इतना भीमसेनी बरास, कर्पूर प्रमुख
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* समागम, अवसर ।