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जैनतस्वादर्श
करनी, सोई शुद्ध साधन है, सोई धर्म है । यह निश्चय धर्म
स्वरूप जानना ।
इन तीनों तत्त्वों की जो श्रद्धा-निश्चल परिणति रूप, तिस को सम्यक्त्व कहते हैं । अरु जिस जीव को इतना बोध न होवे, वो जीव जेकर ऐसे मन में धारे, पक्षपात न करे, " तमेव सचं निस्संकं, जं जिणेहिं पवेइयं " इत्यादि जो जिनेश्वर देवोंने कहा है सो सर्व निःशंकित सत्य है, ऐसी तत्वार्थ श्रद्धा को भी सम्यग्दर्शन- सम्यक्त्व कहते हैं । इससे जो विपरीत होवे, तिसको मिध्यात्व कहते हैं इस मिथ्यात्व का स्वरूप नव तत्त्व में लिख आये हैं, तहां से जान लेना । इस मिथ्याer को त्यागे, तिस को सम्यक्त्व कहते हैं ।
जो पूर्व में सोई निश्चय
अथ निश्चय सम्यक्त्व का स्वरूप लिखते हैं । निश्चय देव, गुरु और धर्म का स्वरूप कहा है, सम्यक्त्व है । अनंतानुबंधी चार कषाय, सम्यक्त्व मोह, मिश्र - मोह, अरु मिथ्यात्व मोह, इन सातों प्रकृति का उपशम करे, तथा क्षयोपशम करे, तथा क्षय करे, तिस जीव को निश्चय सम्यक्त्व होता है । निश्चय सम्यक्त्व प्रत्यक्ष (व्यवहार) ज्ञान का विषय नहीं है । केवली ही जान सकता है, कि इसके निश्चय सम्यक्त्व है । इस सम्यक्त्व के प्रगट भये जीव नरक अरु तिर्यंच, इन दोनों गति का आयु नहीं बांधता है ।
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* आचारात सूत्र श्रुत० १, अ० ५ उ०५ ।