________________ द्वादश परिच्छेद 451 हमारा अपराध क्षमा करो / तब नन्दीश्वरने कहा कि जेकर तुम उसी अवस्था में अर्थात् उमा की मग में महे. श्वर का लिग स्थापन करके पूजो, तो मैं तुम को जीता छोडूंगा / तब लोगों ने तैसे ही बना कर पूजा करी / पीछे नन्दीश्वरने भी ऐसे ही गाम गाम में, नगर नगर में लोगों को डरा डरा करके मन्दिर बनवाये, तिन में पूर्वोक्त आकारे भग में लिंगस्थापन करा के पूजा कराई। यह श्रीमहावीर के अविरति सम्यग्दृष्टि श्रावक महेश्वर की उत्पत्ति है। ___ तथा श्रीमहावीरस्वामी के विद्यमान होते राजगृह नगर में श्रेणिक राजा की चेलणा रानी के कोणिक और श्राद्ध कोणिक नामा पुत्र हुआ / परन्तु कोणिक का श्रेणिक के साथ पूर्वजन्म का वैर था। इस वास्ते कोणिक राजाने श्रेणिक राजा को पकड़ के पिंजरे में दे दिया, और राजसिंहासन ऊपर आप बैठा / जब अपनी माता चेलणा के मुख से सुना कि श्रेणिक को जैसा तू वल्लभ था, ऐसा कोई भी पुत्र वल्लम नहीं था। क्योंकि जब तू वालक था तब तेरी अंगुली पक गई थी, तिस से तुझे रात्रि में नीन्द नहीं आती थी, और तू सर्व रात्रि में रोता था, तब तेरा पिता तेरी अंगुली को अपने मुख में ले कर चूस के उसकी राध रुविर को थूकता था / इत्यादि तेरे पिताने तेरे साथ राग-स्नेह करा है, और तुमने उस उपकार के बदले अपने पिता को पिंजरे में