________________ 350 जैनतत्वादर्श देकर कहा कि, तू महेश्वर से यह पूछ कि ऐसा भी कोई काल है कि, जिस में तुमारे पास कोई भी विद्या नहीं रहती? तब उमाने महेश्वर को पूर्वोक्त रीति से पूछा / महेश्वरने कहा कि जब मैं मैथुन सेवता हूं तब मेरे पास कोई भी विद्या नहीं रहती, अर्थात् कोई विद्या चलती नहीं / तब उमाने चंद्रप्रद्योत राजा को सर्व कथन सुना दिया / तब राजाने उमा से कहा कि, अब महेश्वर तेरे से भोग करेगा, तब हम उसको मारेंगे / उमाने कहा कि मुझ को मत मारना / तब चन्द्रपद्योतने कहा कि तुझ को नहीं मारेंगे / पीछे चन्द्रप्रद्योतने अपने सुभटों को गुप्तपने उमा के घर में छिपा रक्खा। जब महेश्वर उमा के साथ विषय सेवन में मग्न हो के दोनों का शरीर परस्पर मिल के एक शरीरवत् हो गया, तब राजा के सुभटों ने दोनों ही को काट डाला और अपने नगर का उपद्रव दूर करा / पीछे महेश्वर की सर्व विद्याओंने उसके नन्दीश्वर शिष्य को अपना अधिष्ठाता बनाया। जब नन्दीश्वरने अपने गुरु को इस विडम्बना से मारा सुना, तब विद्या से उज्जैन के ऊपर शिला बनाई। और कहने लगा कि, हे मेरे दासो! अब तुम कहां जाओगे! मैं सब को मारूंगा क्योंकि मैं सर्वशक्तिमान् ईश्वर हूं, किसी का मारा मैं मरता नहीं हूं, मैं सदा अविनाशी हूं.। यह सुन कर बहुत लोक डरे और सर्व लोक विनति करके पगों में पड़े, अरु कहने लगे कि