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________________ द्वादश परिच्छेद 441 बडी चिंता हुई, अरु विचारा कि कोई ऐसा उपाय करें कि जिस से इस महेश्वर का विनाश-मरण हो जावे / परन्तु तिसकी विद्या के आगे किसीका कोई उपाय नहीं चलता था। पीछे तिस उज्जैन नगर में एक उमा नामा वेश्या बडी रूपवती रहती थी। उसका यह कौल था कि जो कोई इतना धन मुझे देवे, सो मेरे से भोग करे / जो कोई उसके कहे मूजब धन देता था, सो उसके पास जाता था। एक दिन महेश्वर उस वेश्या के घर गया, तब तिस उमा वेश्याने महेश्वर के सन्मुख दो फूल करे, एक विकशा हुआ, दूसरा मिचा हुआ / तब महेश्वरने विकशे-खिड़े फूल की तर्फ हाथ पसारा / तब उमा वेश्याने मिचा हुआ कमल महेश्वर के हाथ में दिया, और कहा कि यह कमल तेरे योग्य है / तब महेश्वरने कहा, क्यों यह कमल मेरे योग्य है ! तब उमाने कहा कि, इस मिचे हुए कमल समान कुमारी कन्या है, सो तुझ को भोग करने वास्ते वल्लभ है, और मैं खिले हुए फूल के समान हूं। तव महेश्वरने कहा कि तू भी मेरे को बहुत वल्लभ है / ऐसा कह कर महेश्वर उसके साथ भोग भोगने लगा। और तिसके ही घर में रहने लगा। तिस उमाने महेश्वर को अपने वश में कर लिया। उमा का कहना महेश्वर उल्लघन नहीं कर सकता था। ऐसे जब कितनाक काल व्यतीत हुआ, तब चंद्रपद्योत. ने उमा को बुला के उसको बहुत धन और आदर-सन्मान
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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