________________ द्वादश परिच्छेद सत्यकी का सत्य देख के रोहिणी देवी आप प्रगट हो कर कालसंदीपक को कहने लगी कि मत विघ्न कर, क्योंकि मैं इस सत्यकी को सिद्ध होनेवाली हूं, इस वास्ते में सिद्ध हो गई हूं। तब रोहिणी देवीने सत्यकी को कहा कि, मैं तेरे शरीर में किधर से प्रवेश करूं! सत्यकीने कहा कि मेरे मस्तक में हो कर प्रवेश कर / तब रोहिणीने मस्तक में हो कर प्रवेश करा, तिस से मस्तक में खड्डा पड़ गया। तब देवीने तुष्टमान हो कर तिस मस्तक की जगा तीसरे नेत्र का आकार बना दिया / तब तो सत्यकी तीन नेत्रवाला प्रसिद्ध हुआ। पीछे सत्यकीने सोचा कि पेढालने मेरी माता राजा की कुमारी बेटी को विगाड़ा है। ऐसा सोच कर अपने पिता पेढाल को मार दिया। तब लोगोंने सत्यकी का नाम रुद्र( भयानक ) रख दिया, क्योंकि जिसने अपना पिता मार दिया, उससे और भयानक कौन है ! पीछे सत्यकीने विचारा कि कालसंदीपक मेरा वैरी कहां है ! जब सुना कि कालसंदीपक अमुक जगा में है। तब सत्यकी तिस के पास पहुंचा / फिर कालसंदीपक विद्याधर वहां से भाग निकला तो भी सत्यकी तिसके पीछे लगा। कालसंदीपक हेठ ऊपर मागता रहा, परन्तु सत्यकीने तिसका पीछा न छोड़ा / फिर कालसंदीपकने सत्यकी के मुलाने वास्ते तीन नगर बनाये। तब सत्यकीने विद्या से तीनों नगर भी जला दिये, तब कालसंदीपक