________________ जैनतत्त्वादर्श भगवान् के समवसरण में गया। तिस अवसर में एक कालसंदीपक नामा विद्याधर श्रीमहावीर को वंदना करके पूछने लगा कि, मुझ को किस से भय है। तब भगवंत श्री महावीर स्वामीने कहा कि यह जो सत्यकी नामा लड़का है, इस मे तुझ को भय है। तब कालसंदीपक सत्यकी के पास गया, अवज्ञा से कहने लगा कि, अरे तू मुझ को मारेगा ! ऐसे कह कर जोरावरी से सत्यकी को अपने पगों में गेरा / तब तिसके पिता पेढ़ालने सत्यकी का पालन करा, और अपनी सर्व विद्याओं सत्यकी को दे दिया / सत्यकी का यह सातमा भव रोहिणी विद्या साधने में लग रहा था। रोहिणी विद्याने इस सत्यकी के जीव को पांच भव में तो जान से मार गेरा और छठे भव में छः महीने शेष आयु के रहने से सत्यकी के जीवने विद्या की इच्छा न करी; परन्तु इस सातमे भव में तो तिस रोहिणी विद्या को साधने का भारम्भ करा / तिसकी विधि लिखते हैं। अनाथ मृतक मनुष्यों को चिता में जलावे और गीले चमडे को शरीर ऊपर लपेट के पग के वामे अंगुठे से खड़ा हो कर जहां लग तिस चिता का काष्ठ जले तहां लग जाप करे / इस विधि से सत्यकी विद्या साध रहा था। तहां कालसंदीपक विद्याधर भी आ गया, और चिता में काष्ठ प्रक्षेप करके सात दिन रात्रि तक अग्नि बुझने न देनी / तब