________________ द्वादश परिच्छेद सम्यग्दृष्टि श्रावक हुआ है, तिसका सम्बंध आवश्यक शाह में इस तरे लिखा है। विशाला नगरी के चेटक राजा की छठी पुत्री सुज्येष्ठा नामा कुमारी कन्याने दीक्षा लीनी थी सत्यकी और अर्थात् जैनमत की साध्वी हो गई थी। महेश्वरपूजा वो किसी अवसर में उपाश्रय के अन्दर सूर्य के सन्मुख आतापना लेती थी। इस अवसर में पेढाल नामा परिव्राजक अर्थात् संन्यासी विणसिद्ध था। सो अपनी विद्या देने के वास्ते पात्र पुरुष जे देखता था। और उसका विचार ऐसा था कि यदि ब्रहचारिणी का पुत्र होवे, तो सुनाथ होवेगा / तब तिस संन्यासीने रात्रि में सुज्येष्ठा को नग्नपने शीत की आताएना लेती को देखा / तब धुन्धविद्या से अंधकार में विमोह अर्थात् अचेत करके उसकी योनि में अपने वीर्य का संचार करा। तिस अवसर में सुज्येष्ठा को ऋतुधर्म आ गया था, इस वास्ते गर्भ रह गया / तब साथ की साध्वियों में गर्म की चर्चा होने लगी / पीछे अतिशय ज्ञानीने कहा कि सुज्येष्ठाने विषयमोग किसी से नहीं करा, अरु तिस विशाघर का सर्व वृतांत कहा। तब सर्व की शंका दूर हो गई। पीछे समय में सुज्येष्ठा के पुत्र जन्मा। तब तिस लड़के को श्रावकने अपने घर में ले जा के पाला, तिसका नाम सत्यकी रक्खा। एक समय सत्यकी साध्वियों के साथ श्रीमहावीर