________________ जैनतस्वादर्श द्वादश परिच्छेद इस परिच्छेद में श्री महावीर भगवान् से, लेकर आज पर्यंत कितनाक वृत्तांत लिखते हैं। श्री महाश्री महावीर के वीर भगवन्त के ग्यारह शिष्य मुख्य और गणधरादि सर्व साधुओं से बड़े हुये, तिन के नाम ___ कहते हैं-१. इंद्रभूति अर्थात् गौतमस्वामी, 2. अग्निभूति, 3. वायुभूति, 4. व्यक्तस्वामी, 5. सुधर्मास्वामी, 6. मंडिकपुत्र, 7. मौर्यपुत्र, 8. अकंपित, 9. अचलमाता, 10. मैतार्य, 11. प्रभास / और सर्व शिष्य तो चौदह हजार साधु हुये, चौदह हजार से कदे भी अधिक नहीं हुये। और साध्वी छत्तीस हजार हुई / तथा श्रेणिक, उदायन, कोणक, उदायी, वत्सदेश का उदायन, चेटक, नवमल्लिक क्षत्रिय जाति के नवलेच्छिक क्षत्रिय जाति के, उज्जैन का राजा चन्द्रप्रद्योत, अमलकल्पा नगरी का स्वेत नामा राजा, पोलासपुर का विजय राजा, क्षत्रियकुण्ड का नंदिवर्द्धन राजा, वीतभयपट्टन का उदायन राजा, दशाणपुर का दशार्णभद्र राजा, पावापुरी का हस्तिपाल राजा इत्यादि अनेक राजे श्रीमहावीर भगवन्त के सेवक अर्थात् श्रावक थे। और आनंद, कामदेव, संख, पुष्कली प्रमुख श्रावक, और जयंती, रेवती, सुलसा प्रमुख श्राविका तो लाखों ही थे / तिन श्रावकों में एक सत्यकी नामा अविरति,