________________ કાકર जैनतत्वादर्श कर्ता हर्ता नहीं है / तथा स्वर्गादि के भी देनेवाले हम ही / हैं ऐसा बलभद्रजी का कहना सुनने से सर्व ग्राम नगर के लोगों ने कृष्ण बलभद्रजी की प्रतिमा सर्व जगे बना कर पूजी / तब प्रतिमा पूजनेवालों को बहुत सुख धनादि से बलभद्रने आनंदित करा ! इस वास्ते बहुत लोग हरिमक्त हो गये / जब से भक्त हुये तब से पुस्तकों में कृष्णजी को पूर्णब्रह्म परमात्मा ईश्वरादि नामों से लिखा / क्या जाने जब से बलभद्रजीने कृष्ण की पूजा कराई, तब से ही लोगोंने कृष्ण को ही ईश्वरावतार माना हो! और उस समय को पांच हजार वर्ष हुये हों। जिस से लोक में कृष्ण हुये को पांच हजार वर्ष कहते हैं। बाईसमे अरु तेईसमे तीर्थकर के अन्तर में बारमा ब्रह्मदत्त नामा चक्रवर्ती हुआ। तिस पीछे वाराणसी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी अश्वसेन राजा हुआ, तिसकी वामादेवी रानी, तिनका पुत्र श्री पार्श्वनाथ नामा तेईसमा तीर्थकर हुआ। तिस पीछे क्षत्रियकुंड नामा नगर में इक्ष्वाकुवंशी दूसरा नाम सूर्यवंशी सिद्धार्थ नामा राजा हुआ, तिसकी त्रिसला नामा रानी, तिनका पुत्र श्रीवर्द्धमान महावीर नामा चौवीसमा चरम तीर्थकर हुआ। आज कल जो जैनमत भरतखण्ड में प्रचलित है, सो इन ही श्रीमहावीर का शासन अर्थात् उनही के उपदेश से चलता है / और जो जैनमत के शास्त्र हैं, वे सर्व श्रीमहावीर भगवन्त के