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________________ एकादश परिच्छेद में सर्व यदुवंशी बदनाम हुये / इस वास्ते हे माता ! तु भरतखण्ड में जा कर चक्र, शाङ्ग, शंख, गदा का घरनेवाला और पीत-पीले वस्त्रवाला, तथा गरुड़ ध्वजावाला ऐसा मेरा रूप बना कर विमान में बैठ कर लोगों को दिखला / तथा नीलवस्त्र और तालध्वज अरु हल, मूसल, शस्त्र का धरनेवाला, ऐसा तू विमान में बैठ के अपना रूप सर्व जगे दिखला कर लोगो को कहो कि, राम कृष्ण दोनों हम अविनागी पुरुष हैं, और स्वेच्छाविहारी है। जब लोगों को यह सत्य प्रतीत हो जावेगा, तब हमारा सर्व अपयश दूर हो जावेगा / यह श्रीकृष्णजी का कहना सर्व श्रीवलभद्रजीने स्वीकार कर लिया, और भरतखण्ड में जाकर कृष्ण बलभद्र दोनों का रूप करके सर्व जगे विमानारूढ दिखलाया / और ऐसे कहने लगा भो लोको ! तुम कृष्ण वलभद्र अर्थात् हमारे दोनों की सुंदर प्रतिमा बना कर ईश्वर की बुद्धि से बड़े आदर से पूजो / क्योंकि हम ही जगत् के रचनेवाले और स्थिति संहार के कर्ता हैं / और हम अपनी इच्छा से स्वर्ग अर्थात् वैकुंठ से यहां चले आते हैं, और पीछे स्वर्ग में अपनी इच्छा से जाते हैं / और द्वारका हमने ही रची थी तथा हमने ही उसका संहार करा है। क्योंकि जब हम वैकुण्ठ में जाने की इच्छा करते हैं, तब सर्व अपना वंश द्वारिका सहित दग्ध करके चले जाते हैं। हमारे उपरांत और कोई अन्य
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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