________________ एकादश परिच्छेद . तिस पीछे मिथिलानगरी में इक्ष्वाकुवंशी विजयसेन राजा की विप्रा रानी का पुत्र श्रीनमिनाथ नामा इक्कीसमा तीर्थकर हुआ। तिनों के वारे हरिषेण नामा दसमा चक्रवर्ती हुमा है। तथा इस इक्कीसमे और बावीसमे तीर्थकर के अंतर में ग्यारहवां जय नामा चक्रवर्ती हुआ। तिस पीछे सौरीपुर नगर में हरिवंशी समुद्रविजय राजा हुआ, तिसकी शिवादेवी रानी, तिनका श्रीकृष्ण और पुत्र श्रीअरिष्टनेमि नामा बावीसमा तीर्थंकर वलभद्र हुआ। तिनोंके वारे तिनोंके चचे के बेटे नवमे कृष्णवासुदेव और राम बलदेव-बलभद्र बलदेव हुए / इनका प्रतिशत्रु जरासिंघ प्रतिवासुदेव हुआ। तिन में कृष्ण अरु बलभद्र तो जगत् में बहुत प्रसिद्ध हैं। परन्तु जो लोक श्रीकृष्ण वासुदेव को साक्षात् ईश्वर तथा ईश्वर का अवतार, जगत् का कर्ता मानते हैं, सो ठीक नहीं। क्योंकि यह बात कृष्ण वासुदेव के जीते हुये नहीं हुई। किन्तु उनके मरे पीछे लोक कृष्ण वासुदेव को अवतार मानने लगे हैं / तिसका हेतु प्रेसठशलाकापुरुषचरित्र में ऐसे लिखा है जब कृष्ण वासुदेव ने कुसम्बी बन में शरीर छोड़ा, तब काल करके वालपमा पृथ्वी-पाताल में गये / और बलभद्रनी एक सौ वर्ष जैनदीक्षा पाल के पांचमे ब्रह्मदेवलोक में गये। वहां अवधिज्ञान से अपने भाई श्रीकृष्ण को पाताल में