________________ 438 जैनतत्त्वादर्श , चन्द्र नामा पुत्र हुआ। सो आठमा बलदेव और दशरथ राजा की सुमित्रा . रानी का पुत्र नारायण अपरनाम लक्ष्मण, सो आठमा वासुदेव हुआ। जिनों का प्रतिशत्रु रावण प्रतिवासुदेव लंका का राजा हुआ, सो जगत् में प्रसिद्ध है। इन तीनों का यथार्थ स्वरूप पद्मचरित्र से जान लेना। परन्तु लौकिक रामायण में जो रावण के दश शिर लिखे हैं, सो ठीक नहीं है। क्योंकि मनुष्य के रावण और उसके स्वाभाविक दश सिर कदापि नहीं हो सकते दश मुख हैं। पद्मचरित्र प्रथमानुयोग शास्त्र में लिखा है कि, रावण के बडे बडेरों की परंपरा से एक बड़ा नव माणिक का हार चला आता था, सो रावणने बालावस्था से अपने गले में पहिर लिया था। और वे नौ ही माणिक बहुत बडे थे, सो चार माणिक एक पासे स्कंध के ऊपर हार में जडे हुये थे / और पांच माणिक दूसरे पासे जड़े हुए थे। दोनों स्कंधो ऊपर नव माणिकों में नवमुख दीखते थे, और एक रावण का असली मुख था। इस वास्ते दश मुखवाला रावण कहा जाता है। तथा रावण के समय से ही हिमालय के पहाड़ में बद्रीनाथ का तीर्थ उत्पन्न हुआ है, तिसकी उत्पत्ति जैनमत के शास्त्रों में ऐसे लिखी है कि, यह असल में पार्श्वनाथ की मूर्ति थी, तिसका ही नाम बद्रीनाथ रक्खा गया है। इसका पूरा स्वरूप गधबंध पार्थपुराण से जान लेना / /