________________ 436 जैनतत्त्वादर्श राज के पाने से अन्धे, अधम पुरुष अपने को साधुओं से नमस्कार कराना चाहते हैं। और नमुचिबल को कहा कि तू इस बूरे कामको जाने दे, जिस से साधु सबै सुख से रहें / और तू क्यों मत्सर में मगन हो के अपना आप बिगाड़ा चाहता है / साधु चौमासे में विहार करते नहीं क्योंकि चौमासे में जीवों की बहुत उत्पत्ति हो जाती है। और सर्व जगे तेरा ही राज्य है, तो सर्व साधु सात दिन में कहां चले जाएं ! तब नमुचिवल कुकाष्ठ की तरे होकर बोला कि, बहुत कहने से क्या है ! पांच दिन से उपरांत जो कोई तुमारा साधु मेरे राज्य में रहेगा, तो मैं उसको चौर की तरे बद्ध करूंगा। और तू हमारे मानने योग्य है, इस वास्ते तू जाकर साधुओं को कह दे कि, जो जीवना चाहते हो, तो नमुचि के राज्य से बाहिर चले जाओ क्योंकि राज्य ब्राह्मण का है / और तेरे मान के रखने वास्ते तीन कदम अर्थात् तीन डग जगा देता हूं। तिस से बाहिर जिस साधु को देखूगा, तिस का शिर छेद करूंगा / तब विष्णुमुनिने विचारा कि यह साम अर्थात् मीठे वचनों के योग्य नहीं, यह तो बड़ा पापी साधुओं का घातक है, इस की जड़ ही उखाड़नी चाहीये / तब विष्णुमुनिने कोप में आ कर वैक्रिय लब्धि से लाख योजन की देह बनाई, एक डग से तो मरतक्षेत्रादि मापा और दूसरी डग पूर्वापर समुद्र ऊपर धरी और तीसरी डग नमुचिबल