________________ एकादश परिच्छेद लगा कि, सात दिन के अंदर मेरे राज से वाहिर हो जाओ। जो रहेगा, सो मारा जायगा। यह सुन के सब साधु अपने तपोवन में आये, और सोचने लगे कि अव क्या उपाय करें? तब एक साधु कहने लगा कि महापड़ा चक्रवर्ती का बड़ा भाई विष्णुमुनि लब्धिपात्र है, अर्थात् बड़ी शक्तिवाला मेरु पर्वत ऊपर है, तिस के कहने से यह नमुचित्रल प्रगांत हो जावेगा। इस वास्ते कोई चारण साधु उसको यहां बुला लावे तो ठीक है। तब एक साधु बोला कि मेरी वहां मेरु पर्वत पर जाने की तो शक्ति है, परन्तु पीछे आने की गति नहीं है। तब गुरु कहने लगे कि, तुम को पीछे विष्णुमुनि ही यहां ले आयेंगे, तुम जाओ / तब वो साधु लब्धि से एक क्षण में तहां गया, और सर्व वृत्तांत सुनाया। तब विष्णुमुनिने उस साधु को भी साथ ले कर तत्काल गुरु के पास आ के वंदना करी। पीछे गुरु की आज्ञा से अकेला ही राजसभा में आया। तब नमुचिबल के बिना समा के और सब लोकोंने उठके वंदना करी। तब विष्णुमुनिने धर्मोपदेश देकर कहा कि निःसंगी साधुओं से वैर करना महा नरक का कारण है, क्योंकि साधु किसी का कुछ विगाड़ते नहीं। और जगत् तो बड़े पुरुषों को नमस्कार करता है। किसी शास में मुनि निदे नहीं हैं। तो फिर यह आश्चर्य है कि, तुच्छ, क्षणिक