________________ एकादश परिच्छेद 433 * हस्तिनापुर नगर में पद्मोत्तर नामा राजा, तिसकी ज्वाला देवी रानी, तिनका बड़ा पुत्र विष्णुकुमार, विष्णुनुनि तथा और छोटा पुत्र महापद्म हुआ। तिस अवसर नमुचिल में अवंती नगरी में श्रीधर्म नामा राजा का मंत्री नमुचि [अपरनाम बल] मिथ्यादृष्टि ब्रामण था / इसने श्रीमुनिसुव्रत तीर्थंकर के शिष्य श्री सुत्रताचार्य के साथ अपने मत का विवाद करा, बाद में हार गया। तब रात्रि को तलवार ले के आचार्य को मारने चला, रास्ते में पग थम गये / राजाने यह बात सुन के अपने राज्य से बाहिर निकाल दिया। तब नमुचिवल तहां से चल के हस्तिनापुर में युवराज महापद्म की सेवा करने लगा। किसी काम से तुष्टमान हो के महापद्म ने तिसको यथेच्छा वर दिया। पीछे पद्मोत्तर राजा और विष्णुकुमार दोनोंने सुत्रत गुरु के पाम दीक्षा ले लीनी / पद्मोचर मोक्ष गया और विष्णुकुमार तप के प्रभाव से महालब्धिमान हुआ। इस अवसर में मुवताचार्य फिर हस्तिनापुर में आये। तब नमुचिबलने विचारा कि यह वैर लेने का अवसर है। तब महापद्म चक्रवर्ती से विनति करी कि मैंने जैसे वेदों में कहा है तसे एक महायज्ञ करना है, इस वास्ते में पूर्वोक्त वर मांगना चाहता हूं / तब महापझने कहा कि मांग / तव नमुचिः ने कहा कि मुझे कितनेक दिन तक अपना सर्वराज दे दो। यह सुनकर महापद्मने उसके कहे दिन तक सर्वराज