________________ एकादश परिच्छेद 431 को मारने आया। परशुरामने सुमूम के मारने को परशु चलाया वो परशु सुभूम तक पहुंचने से पहिले ही आग के अंगारे की तरे वुझ गया। विद्या देवी जो थी, सो सुम्म के पुण्य प्रभाव से परशु को छोड़ के भाग गई / तब सुम्मने शस के अभाव से थाल ही उठा के परशुराम को मारा, तिस थाल का चक्र बन गया, तिस चकने परशुराम का मस्तक काट गेरा / तिस चक्र से ही सुभूम आठवां चक्रवर्ती हुआ। इस कथा पर लोगोंने जो वह कथा वना रक्खी हैं, सो ठीक नहीं है। सो कथा कहते है / जैसे कि परशुराम परशु से क्षत्रियों को काटता हुआ रामचन्द्रजी के पास पहुंचा, और परशु से रामचन्द्रजी को मारने लगा। तब रामचन्द्रजीने नरमाई से पगचंपी करके उसका तेज हर लिया। तव परशुराम का परशु हाथ से गिर पड़ा और फिर न उठा सका / यह श्रीरामचन्द्र नहीं था, परन्तु यह तो सुभूम नामा आठवां चक्रवर्ती था, जिसने परशुराम का काम तमाम किया / इस कथा के वनानेवालोंने परशुराम की हीनता दूर करने को श्रीरामचन्द्रजी का सम्बन्ध लिख दिया है / है असल में सुभूम चक्रवर्ती। लिखनेवालोंने यह भी सोचा होगा कि एक अवतारने दूसरे अवतार का अंश खींच लिया, इस में परशुराम की लघुता न होवेगी। परन्तु यह नहीं सोचा होगा कि दोनों अवतार अज्ञानी बन