________________ जैनवत्वादर्श . है कि, जिस में हम रहते हैं, क्या इस से अधिक भी है। तव माता कहने लगी, हे पुत्र | लोक तो अनंत है। तिस में मक्खी के पग जितनी जगा में यह आश्रम है / इस लोक में बहुत प्रसिद्ध हस्तिनापुर नगर है। तिस नगरी का राजा तेरा पिता कृतवीर्य था, परन्तु परशुराम तेरे पिता को मार के हस्तिनापुर का राजा बन गया है। और तिस परशुरामने निःक्षत्रिय पृथ्वी कर दी है। तिस परशुराम के भय से हम यहां आश्रम में छिपे हुये बैठे हैं। अपनी माता का यह कहना सुन के सुभूम भौम की तरे अर्थात् मंगल के तारे की तरे लाल हुआ, और तहां से निकल के सीधा हस्तिनापुर में आया। तब लोगोंने पूछा कि तू ऐसा अत्यद्भुत अंदर किस का बेटा है ! तब कहा कि मैं क्षत्रिय का पुत्र हूं। तब लोगोंने कहा कि तू यहां जलती आग में क्यों आया। तब तिसने कहा कि मैं परशुराम को मारने वास्ते आया हूं। तब लोगोंने बालक जान के उसकी बात ऊपर कुछ ख्याल न करा / तब सुभूम सिंह की तरे उस पूर्वोक्त सिंहासन ऊपर जा के बैठा, और वहां देवता के विनियोग से दाढों की क्षीर बन गई / तिसको सुम्म खाने लग गया। तब तहां जो रखवाले ब्राह्मण थे, वे सर्व सुभूम को मारने को उठे। तब मेघनाद विद्याधर ने सब ब्राह्मणों को मार दिया / तब कांपता हुआ और होठों को चबाता हुआ, क्रोध में भरा हुआ, ऐसा परशुराम कोहाड़ा( परशु) लेके सुभूम