________________ 426 जैनतत्त्वादर्श सर्व ब्राह्मणों में उत्तम प्रतापवाला तेरे को पुत्र होवेगा / तब रेणुकाने कहा कि हस्तिनापुर में कुरुवंशी अनंतवीर्य राजा को मेरी बहिन ब्याही है। तिसके वास्ते तू क्षत्रिय चरु भी साध, अर्थात् मन्त्रों से संस्कार करके सिद्ध कर / पीछे जमदग्नि ने ब्राह्मण चरु तो अपनी भार्या वास्ते अरु क्षत्रिय चर तिस भार्या की बहिन वास्ते सिद्ध करा / तब रेणुकाने मन में विचार करा कि, मैं जैसे अटवी में हरिणी की तरे रहती हूं, तो मेरा पुत्र भी वैसे ही जंगलों में रहेगा; इस वास्ते मैं क्षत्रिय चरु भक्षण करूं, जिससे मेरा पुत्र राजा हो के इस जंगल के वास से छूट जावे / ऐसा बिचार के क्षत्रिय चरु खा लिया, और ब्राह्मण चर अपनी बहिन को भक्षण कराया / तब तिन दोनों के दो पुत्र हुये / तिस में रेणुका के तो राम नामक पुत्र हुआ, और रेणुका की बहिन के कृतवीर्य पुत्र हुआ। क्रम से दोनों बड़े हुए, राम तो आश्रम में पला, और कृतवीर्य राजमहलों में पला / राम तो क्षात्रतेज अर्थात् क्षत्रियपने की तेजी दिखाने लगा। अन्यदा एक विद्याधर अतिसार रोगवाला तिस आश्रम में आ गया। अतिसार के प्रभाव से आकाशगामिनी विद्या मूल गया। तब तिस मांदे विद्याधर की रामने औषध पथ्यादि करके भाई की तरें सेवा करी / पीछे तिस विद्याधरने तुष्टमान हो के राम को परशुविद्या दीनी / तव