________________ एकादश परिच्छेद કર मांग के खानेवाला जब देखा और उसका पूर्वोक्त वचन सुना, तब सबने थूका और कहा कि ऐसी बात कहते हुये तुझ को लज्जा नहीं आती है। यह बात सुन कर जमदग्नि को वड़ा क्रोध चढ़ा, तब विद्या के प्रभाव से उन राजपुत्रियों को कुबड़ी और महा कुरूपवती बना दिया / अरु आप तहां से निकल के महलों के अंगन में आया। तहां राजा की एक छोटी वेटी रेणुपुल-मट्टी के ढेर में खेल रही थी / तिसको हाथ में विजोर का फल ले कर कहने लगा, हे रेणुका ! तू मुझ को वाछती है। तब तिस बालिकाने विजोरे को देख के हाथ पसारा / तब मुनिने कहा कि मुझ को यह वांछती है, ऐसे कहकर मुनिने उसको ले लिया। पीछे राजाने कितनीक गौओं और धन देकर लड़की का विवाह उसके साथ विधि से कर दिया। तब जमदग्निने सालियों के स्नेह से सर्व कन्याओं को अच्छा कर दिया और तिस रेणुका भार्या को लेकर अपने आश्रम में आया। __पीछे तिस मुग्धा, मधुर आकृति, हरिणी समान लोलाक्षी को प्रेम से वृद्धि करता भया। जमदग्नि के अंगुलियों ऊपर दिन गिनते हुए जब वो रेणुका सुन्दर यौवन-काम के लीला वन को प्राप्त हुई, तब जमदग्नि ने अग्नि की साक्षी करके रेणुका से फिर विवाह करा। जब रेणुका ऋतुकाल को प्राप्त हुई, तब जमदग्नि कहने लगा कि मै तेरे वास्ते चरु साधता हूं। [चरु होम में डालने की वस्तुओं को कहते हैं ] जिस से