________________ 424 जैनतत्त्वादर्श तेरा निष्फल है। क्योंकि तुमारे शास्त्रों में लिखा है",अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' अर्थात् पुत्र रहित की गति नहीं। यह तुमने शास्त्र में नहीं सुना ! जिस की शुभगति न हुई तिससे अधिक और पापी कौन है ! तब जमदग्नि ने सोचा कि हमारे शास्त्र में तो जैसे चिडेने कहा है, तैसे ही है। तब मन में विचारा कि, जब मेरे स्त्री और पुत्र, नहीं, तब मेरा सर्व तप ऐसा है, जैसा पानी के प्रवाह में मूतना। पीछे जमदग्नि के मन में स्त्री की चाहना उत्पन्न हुई / यह देख के ध्वनंतरी देवता श्रावक जैनधर्मी हो गया / अरु वहां से दोनों देवता अदृश्य हो गये और जमदग्नि वहां से उठ के नेमिक कोष्टक नगर में पहुंचा। तिस नगर में जितशत्रु राजा था, तिसके बहुत बेटियां थीं। तिस राजा पासों एक कन्या मागू, ऐसा विचार किया / राजा भी आसन से उठ के और हाथ जोड़ के कहता भया कि, आप किस वास्ते आये हो ! और मुझे आदेश दो कि क्या करूं ! तब जमदग्निने कहा कि, मैं तेरे पास तेरी एक कन्या मांगने आया हूं। तब राजाने कहा कि मेरी सौ पुत्री हैं, तिन में से जौनसी तुम को वांछे सो तुम ले लो। तब जमदग्नि कन्याओं के महल में गया, और कहने लगा कि तुम में से जिसने मेरी धर्मपत्नी बनना है, सो कह देवे कि मैं तुमारी स्त्री बनूंगी। तब तिन राजपुत्रियोंने जटावाला और पलित-धौले केशोंवाला, दुर्बल और भीख