________________ 422 जैनतत्वादर्श पद्मरथ राजा नया ही जिनधर्मी हो कर भावयति हुआ। सो चम्पानगरी में गुरुओं के पास दीक्षा लेने वास्ते जाता था, तिस को पंथ में तिन दोनों देवताओंने देखा तब रस्ते में दुःख देनेवाले बहुत कंटे, कंकरे बना दिये, तथा रस्ते के सिवाय दूसरे स्थान में बहुत कीड़े आदि जीव हर जगे बना दिये। तब राजा भावयति के भावों से कमल समान कोमल, नंगे पगों से उन कांटे, कंकरों के ऊपर चला जाता है, पगों में से रुधिर की ततीरियां छूटती हैं, तो भी जीवों संयुक्त भूमि ऊपर नहीं चलता है। तब देवताओं ने गीत नाटक का बड़ा प्रारंभ करा, तो भी वो क्षोभाय मान न हुआ। तब दोनों देवता सिद्धपुत्रों का रूप कर के राजा को कहने लगे, हे महाभाग ! तेरी आयु अभी बहुत है, तू स्वच्छन्द भोगविलास कर, क्योंकि यौवन में तप करना ठीक नहीं, इस वास्ते जब तू वृद्ध हो जावेगा तब दीक्षा ले लीजो / यह बात सुन कर राजा कहने लगा कि, यदि मेरी बहुत आयु है, तब मैं बहुत धर्म करुंगा, क्योंकि जितना ऊंडा पानी होता है, तितनी ही कमल की नालि भी बढ़ जाती है। और यौवन में इंद्रियों को जीतना है, सोई असली तप होता हैं। तब तिन देवताओं ने जाना कि यह तो कदापि चलायमान न होगा। पीछे वो दोनों देवता मिल कर सर्व से उत्कृष्ट जमदग्नि तापस के पास परीक्षा करने को गये। तब तिनोंने जिसकी