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________________ 420 जैनवत्वादर्श.. प्रतिवासुदेव हुये। तिस पीछे रलपुरी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी भानु नामा राजा हुआ, तिसकी सुव्रता नामा रानी, तिनों का पुत्र श्री धर्मनाथ नामा पंदरहवां तीर्थकर हुआ। तिनके वारे पांचमा पुरुषसिंह नामा वासुदेव और सुदर्शन नामा बलदेव तथा निशुंभ नामा प्रतिवासुदेव हुआ। यहां तक पांच वासुदेव हुये, सो पांचों ही अरिहंतों के सेवक अर्थात् जैनधर्मी हुये। तिस पीछे पंदरहवें धर्मनाथ और सोलहवें श्रीशांतिनाथजी के अंतर में तीसरा मघवा नामा चक्रवर्ती और चौथा सनत्कुमार नामा चक्रवर्ती हुये। तिस पीछे हस्तिनापुरी नगरी में कुरुवंशी विश्वसेन राजा हुआ, तिसकी अचिरा रानी, तिनका पुत्र श्रीशांतिनाथ नामा हुवा / सो पहिले गृहवास में तो पांचमा चक्रवर्ती था, पीछे दीक्षा लेके केवली होकर सोलहवां तीर्थकर हुआ। __तिस पीछे हस्तिनापुर नगर में कुरुवंशी सूरनामा राजा हुआ, तिसकी श्री रानी, तिनोंका पुत्र श्रीकुंथुनाथ हुआ / सो प्रथम गृहस्थावस्था में छट्ठा चक्रवर्ती था, अरु दीक्षा लिये पीछे सतरहवां तीर्थकर हुआ। / ' तिस पीछे हस्तिनापुर नगरी में कुरुवंशी सुदर्शन नामा राजा हुआ, तिसकी देवी रानी, तिनोंका पुत्र श्रीअरनाथ हुआ। सो गृहस्थावास में तो, सातवां चक्रवर्ती था और दीक्षा लिये पीछे अठारहवां तीर्थकर हुआ। ,
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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