________________ 14 जैनतत्त्वादर्श अब श्रावस्ती नगरी में इक्ष्वाकुवंशी जितारि राजा राज्य करता था, तिसकी सेना नामा पटरानी थी। तिनों का संभव नामा पुत्र तीसरा तीर्थकर हुआ। यह चौवीस ही तीर्थंकरों का वर्णन प्रथम परिच्छेद में यन्त्र और वार्ता में लिख आये हैं / इस वास्ते यहां संक्षेप से लिखेंगे / और तीर्थंकरों के आपस में जो अंतरकाल हैं सो भी यन्त्रों में देख लेना। इन के पीछे अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुवंशी संवर राजा और तिसकी सिद्धार्था नामक रानी से अभिनन्दन नामक चौथा तीर्थकर पुत्र हुआ। पीछे अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुवंशी मेघराजा की सुमंगला रानी से सुमतिनाथ नामक पांचमा तीर्थकर पुत्र हुआ। पीछे कौसंबी नगरी में इक्ष्वाकुबंशी श्रीधर राजा की सुसीमा रानी से पद्मप्रम नामक छटा तीर्थकर पुत्र हुआ / पीछे वाराणसी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी प्रतिष्ठ राजा हुआ, तिसकी पृथ्वी नामा रानी, तिनों का पुत्र श्री सुपार्श्वनाथ नामा सातमा तीर्थकर हुआ / पीछे चंद्रपुरी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी महासेन राजा हुआ, तिसकी लक्ष्मणा नामा रानी, तिनों का पुत्र श्री चन्द्रप्रम नामा आठमा तीर्थकर हुआ। पीछे काकंदी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी मुग्रीव राजा हुआ, तिसकी रामा नामक रानी, तिनका पुत्र श्री सुविधिनाथ ' अपरनाम पुष्पदन्त नवमा तीथे. कर हुआ।