SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश परिच्छेद 413 सगर राजा ने श्रीशचंजय तीर्थ ऊपर श्रीभरत के बनाये ऋषभदेवजी के मंदिर का उद्धार करा / तथा और जैनतीर्थों का भी उद्धार करा / तथा यह समुद्र भी भरत क्षेत्र में सगर ही देवता के सहाय से लाया / लंका के टापू में वैताब्य पर्वत से सगर की आज्ञा से धनवाहन पहिला राजा हुआ। और लंका के टापू का नाम राक्षसद्वीप है, इस हेतु से धनवाहन राजा के वंश के राक्षस कहलाये। इसी वंश में राजा रावण और बिभीषणादि हुये हैं। इत्यादि सगरचक्रवर्ती के समय का हाल बेसठशलाकापुरुषचरित्र से जान लेना / क्योंकि तिस चरित्र के तेतीस हज़ार काव्य हैं / इस वास्ते में उसका सारा हाल इस अंथ में नहीं लिख सकता हूं, परन्तु संक्षेप मात्र वृतांत लिखा है। सगरचक्रवर्ण राज्य करके पीछे श्री अजितनाथनी के पास दीक्षा लेकर, संयम तप करके केवलज्ञान पा कर मोक्ष पहुंचे। और अजितनाथ स्वामी भी समेतशिखर पर्वत के ऊपर शरीर छोड़ के मोक्ष गये। श्रीऋषभदेव स्वामी के निर्वाण से पचास लाख कोटी, सागरोपम के व्यतीत हुए श्रीअजितनाथ तीर्थंकर का निर्वाण : हुआ। श्रीसंभवनाथनी तीसरे तीर्थकर हुये / राज्य सई सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, और कुरुवंशी, आदिक राजाओं के घराने में रहा।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy