________________ एकादश परिच्छेद भरत अरु बाहुबली दोनों दीक्षा ले के मोक्ष गये। तब भरत के पीछे सूर्ययश गद्दी पर बैठा / तिस की औलाद सूर्यवंशी कहलाई। तिस के पीछे सूर्ययश का वेय महायश गद्दी पर बैठा, ऐसे ही अतिवल, महाबल, तेजवीर्य, कीर्तिवीर्य अरु दण्डवीर्य, ये पांच अनुक्रम से अपने 2 बाप की गद्दी पर बैठे अपने 2 राज का प्रबंध करते रहे, परन्तु भरत के राज से इनोंने आधा (तीन खण्ड) राज्य करा, और भरत की तरे राज्य छोड़ कर मोक्ष में गये / इनके पीछे गद्दी पर असंख पाट हुये, तिन की व्यवस्था चित्तांतरगंडिका से जान लेनी, यावत् जितशत्रुराजा हुआ / अब अजितनाथ स्वामी के वक्त का स्वरूप लिखते हैं। अयोध्या नगरी में श्री भरत के पीछे जब श्री अजितनाथ असंख्य राजा हो चुके, तब इक्ष्वाकुवंश में और सगर जितशत्रु राजा हुआ। विनीता नगरी का ही चक्रवर्ती दूसरा नाम अयोध्या है। परन्तु अब जो अयोध्या है, सो वो अयोध्या नहीं। वो तो कैलास पर्वत के पास थी, और यह तो नवीन अयोध्या उसके नाम से वसी है। जितशत्रु राजा का छोटा भाई सुमित्र युवराज था / जितशत्रु की विजया देवी रानी थी, तिस के चौदह स्वप्नपूर्वक अजितनाथ नामा पुत्र हुआ। और सुमित्र की रानी यशोमती को भी चौदह स्वप्न देखनेपूर्वक सगरनामा पुत्र हुआ / जब दोनों यौवनवंत हुए तव