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________________ 410 जैनतत्त्वादर्श तब श्रावक ब्राह्मण मिल कर देवताओं को अतिभक्ति से याचना करते भये / तब वे देवता तिन को बहुत जान करके बड़े यत्न से याचने के पीड़े हुये देख कर कहते भये कि अहो याचका ! अहो याचका ! तब ही से ब्राह्मणों को याचक कहने लगे। तब ब्रामणोने ऋषभदेव की चिता में से अग्नि लेकर अपने अपने घरों में स्थापन करते मये, तिस कारण से ब्राह्मणों को अहिताग्नि कहने लगे। श्रीऋषभदेव की चिता जले पीछे दादादिक सर्व तो देवता ले गये, शेष भस्म अर्थात् राख रह गयी, सो ब्राह्मणों ने थोडी थोडी सर्व लोगों को दीनी / तिस राख को लोगों ने अपने मस्तक ऊपर त्रिपुंड्राकार से लगायी, तब से ही त्रिपुंड लगाना शुरू हुआ। इत्यादि बहुत व्यवहार तब से ही चला है। ___ जब भरत ने कैलास पर्वत के ऊपर सिंहनिषद्या नामा मंदिर बनाया, उस में आगे होनेवाले तेईस तीर्थंकरों को और श्रीऋषभदेवनी की अर्थात् चौवीश प्रतिमा की स्थापना करी / और दंडरल से पर्वत को ऐसे छीला कि जिस पर कोई पुरुष पगों से न चढ़ सके / उसमें आठ पद (पगथिये) रक्खे। इसी वास्ते कैलास पर्वत का दूसरा नाम अष्टापद कहते हैं। तव से ही कैलास महादेव का पर्वत कहलाया। महादेव अर्थात् बड़े देव, सो ऋषभदेव, तिस का स्थान कैलास पर्वत जानना।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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