________________ एकादश परिच्छेद 401 हुये हैं। इस लिखने से क्या आश्चर्य है ! जो किसीने उलटपुलट के फिर नवीन वेद बना दिये हों। इन वेदों ऊपर अवट, सायण, रावण, महीधर, अरु शंकराचार्यादिकोंने भाष्य बनाये हैं, टीका दीपिका रची है। फिर अब उन प्राचीन भाष्य दीपिका को अयथार्थ जान के दयानन्द सरस्वती स्वामी अपने मत के अनुसार नवीन भाष्य बना रहे हैं। परन्तु पंडित ब्राह्मण लोक दयानन्द सरस्वती के भाष्य को प्रमाणिक नहीं मानते हैं। अब देखना चाहिये क्या होता है! और जैनमत वालोंने तो अब से उनके शास्त्रों के लिखने मूजव आर्य वेद बिगड़ गये, उसी दिन से वेदों को मानना छोड़ दिया है। जब ऋषभदेवजी का कैलास पर्वत के ऊपर निर्वाण हुआ, तब सर्व देवता निर्वाण महिमा करने श्रीऋषभदेव का को आये। तिन सर्व देवताओं में से अग्निनिर्वाण कुमार देवता ने श्री ऋषभदेव की चिता में अग्नि लगाई, तब से ही यह श्रुति लोक में प्रसिद्ध हुई है--"अग्निमुखा वै देवाः" अर्थात् अग्निकुमार देवता सर्व देवताओं में मुख्य है / और अल्पबुद्धियों ने तो इस श्रुति का अर्थ ऐसा बना लिया है कि अग्नि जो है, सो तेतीस मोड़ देवताओं का मुख है। यह प्रभु के निर्वाण का स्वरूप सर्व आवश्यक सूत्र से जान लेना। जब देवताओंने श्री ऋषभदेव की दाढ़े वगेरे लीनी