________________ 407 एकादश परिच्छेद तिसका रोग शांत करा। तब पर्वत ने राजा को उप. देश करा कि हे राजन् ! सौत्रामणि नामा यज्ञ करके, मद्यपान अर्थात् शराब पीने में दोष नही। तथा गोसव नामा यज्ञ में अगम्य स्त्री ( चाडाली) आदि तथा माता, बहिन, बेटी आदि से विषय सेवन करना चाहिये / मातृमेघ में माता का और पितृमेध में पिता का वध अंतर्वेदी कुरुक्षेत्रादिक में करे, तो दोष नहीं / तथा कच्छु की पीठ ऊपर अग्नि स्थापन करके तर्पण करे, कदाचित् कच्छु न मिले तो शुद्ध ब्राह्मण के मस्तक की टटरी ऊपर अग्नि स्थापन करके होम करे, क्योंकि टटरी भी कच्छु की तरे होती है। इस बात में हिंसा नहीं है, क्योंकि वेदों में लिखा है सर्व पुरुष एवेदं, यद्भूतं यद्भविष्यति / ईशानो योऽमृतत्वस्य, यदनेनातिरोहति // इसका भावार्थ यह है कि, जो कुछ है, सो सब ब्रह्मरूप ही है / जब एक ही ब्रह्म हुआ, तब कौन किसीको मारता है ! इस वास्ते यथारुचि से यज्ञों में जीवहिंसा करो, और तिन जीवों का मांस भक्षण करो, इसमें कुछ दोष नहीं। स्योंकि देवोद्देश करने से मांस पवित्र हो जाता है। इत्यादि उपदेश देकर सगर राजा को अपने मत में स्थापन करके अंतर्वेदी कुरुक्षेत्रादि में उस पर्वत ने यज्ञ कराया। तब