________________ 406 जैनतत्त्वादर्श अरु मधुपिंगल तो उस अपमान से बालतप करके साठ हज़ार वर्ष की आयुवाला कालनामा असुर परमधार्मिक देव हुआ / तब अवधिज्ञान से सगर का कपट जो उसने सुलसा के स्वयंवर में झूठा पुस्तक बनाया था, और अपना जो अपमान हुआ था, सो देखा जाना / तब विचार करा कि सगर राजादिकों को मैं मारूं। तब तिन के छिद्र देखने लगा। जब शुक्तिमती नगरी के पास पर्वत को देखा, तब ब्राह्मण का रूप करके पर्वत को कहने लगा कि, हे पर्वत ! मैं तेरे पिता का मित्र हूं, मेरा नाम शांडिल्य है, मैं और तेरा पिता हम दोनों साथ होकर गौतम उपाध्याय के पास पढे थे / मैंने सुना था कि नारदने और दूसरे लोगों ने तुझे बहुत दुःखी करा, अब मैं तेरा पक्ष करूंगा, और मन्त्रों करके लोगों को विमोहित करूंगा। यह कह कर पर्वत के साथ मिल के लोगों को नरक में डालने वास्ते तिस असुर ने बहुत व्यामोह करा, व्याधि भूतादि दोष लोगों को कर दिये। पीछे वहां जो लोक पर्वत का वचन मान लेता था, तिस को अच्छा कर देता था। शांडिल्य की आज्ञा से पर्वत भी लोगों को अच्छा करने लगा। उपकार करके लोगों को अपने मत में मिलाता जाता था। तब तिस असुर ने सगर राजा को तथा तिसकी रानियों को बहुत भारी रोगादिक का उपद्रव करा। तब तो राना भी पर्वत का सेवक बना / अरु पर्वतने शांडिल्य के साथ मिल के