________________ 4050 एकादश परिच्छेद भार्या हुई / तिस का वेटा मधुपिंगल नामा मेरा भतीजा है। तो हे सुन्दरी ! मैं तेरे को तिस मधुपिंगल को देना चाहती हूं, और तूं तो क्या जाने स्वयंवर में किस को दी जायगी ! मेरे मन में यह शल्य है। इस वास्ते तूने स्वयंवर में सर्व राजाओं को छोड़ के मेरे भतीजे मधुपिंगल को वरना / तब सुलसाने माता का कहना स्वीकार कर लिया और मंदोदरीने यह वृत्तांत सुन कर सगर राजा को कह दिया / तब सगर राजाने अपने विश्वभूति नामा पुरोहित को आदेश दिया। वो विश्वमूति बड़ा कवि था उसने तत्काल राजा के लक्षणों की संहिता बनाई / तिस संहिता में ऐसे लिखा कि सगर तो शुभ लक्षणवाला बन जावे और मधुपिंगल लक्षणहीन सिद्ध हो जावे। तिस पुस्तक को संदूक में बन्द करके रख छोड़ा / जब सब राजा आकर स्वयंवर में इकडे बैठे, तब सगर की आज्ञा से विश्वभूतिने वो पुस्तक काढ़ा / अरु सागरने कहा कि जो लक्षणहीन होवे, तिस को या तो मार देना, अथवा स्वयंवर से वाहिर निकाल देना / यह कहना सब ने मान लिया / तब तो पुरोहित यथा यथा पुस्तक वाचता जाता है, तथा मधुर्पिगल अपने को अपलक्षणवाला मान कर लज्जावान् होता जाता है। और स्वयंवर से आप ही आप निकल गया। तब सुलसा ने सगर को वर लिया, दूसरे सर्व राजा अपने अपने स्थानों को चले गये।