________________ 404 जैनतत्त्वादर्श यहां रावणने नारद को पूछा कि वो महाकाल असुरु कौन था , नारद, ने कहा यहां चरणायुगल महाकालासुर नामा नगर है। तिस में अयोधन नामा राजा और पर्वत था, तिस की दिति नामा भार्या थी। तिन दोनों की सुलसा नामक बहुत रूपवती बेटी थी। तिस सुलसा का स्वयंवर उसके पिताने करा। वहां और सर्व राजे बुलवाये / तिन सर्व राजाओं में से सगर राजा अधिक था। तिस सगर राजा की मंदोदरी नामा रणवास की दरवाजेदार सगर की आज्ञा से प्रतिदिन अयोधन राजा के आवास में जाती थी। एक दिन दिति घर के बाग के कदली घर में गई, और सुलसा के साथ मंदोदरी भी तहां आ गई। तब मंदोदरी, सुलसा और दिति इन दोनों की बातें सुनने के वास्ते तहां छिप गई। तब दिति सुलसा को कहने लगी, हे बेटी ! मेरे मन में इस तेरे स्वयंवर विषे बड़ा शल्य है, तिस का उद्धार करना तेरे आधीन है, इस वास्ते तू सुन ले / , मूल से श्रीऋषभदेव स्वामी के भरत अरु बाहुबली यह दो पुत्र हुये। फिर तिनके दो पुत्र हुये तिन में भरत का सूर्ययश और बाहुबली का चन्द्रयश, जिनों से सूर्यवंश और चन्द्रवंश , चले हैं। चन्द्रवंश में मेरा भाई तृणबिंदुनामा . हुआ / तथा सूर्यवंश में तेरा पिता राजा. अयोधन हुआ / और अयोधन राजा की बहिन सत्ययशा नामा तृणबिंदु की