________________ 402 जैनतस्वादर्श सत्य से ही मेघ वर्षता है, और सत्य से ही देवता सिद्ध होते हैं, सत्य के प्रभाव से ही यह लोक खड़ा है, और तूं पृथ्वी में सत्यवादी सूर्य की तरें प्रकाशक है, इस वास्ते सत्य ही कहना तुम को उचित है, और हम इस से अधिक क्या कहें ! यह वचन सुन कर भी वसुराजा ने अपने सत्य बोलने की प्रतिज्ञा को जलांजली दे कर " अजान्मेषान् गुरुर्व्याख्यदिति " अर्थात् अज का अर्थ गुरु ने मेष (बकरा) कहा था ऐसी साक्षी वसुराजाने कही, तब इस असत्य के प्रभाव से व्यंतर देवता ने वसुराजा के सिंहासन को तोड़ के वसुराजा को पृथ्वी के ऊपर पटक के मारा। तब तो वसुराजा मर के सातमी नरक में गया / पीछे वसुराजा के राज सिंहासन ऊपर वसुराजा के आठ पुत्र-१. पृथुवसु, 2. चित्रवसु, 3. वासव, 4. शक्त, 5. विभावसु, 6. विश्वावसु, 7. सूर, 8. महासूर, ये आठों अनुक्रम से गद्दी ऊपर बैठे। उन आठों ही को व्यंतर देवताओं ने मार दिया / तब सुवसु नामा नवमा पुत्र तहां से भाग कर नागपुर में चला गया, और दसमा बृहद्ध्वज नामा पुत्र भाग कर मथुरा में चला गया, और मथुरा में राज करने लगा / इस बृहवन की संतानों में यदुनामा राजा बहुत प्रसिद्ध हुआ / इस वास्ते हरिवंश का नाम छूट गया और यदुवंशी प्रसिद्ध हो गये। . यदु राजा के सूर नामक पुत्र हुआ। तिस सूर राजा के.