________________ एकादश परिच्छेद 401 पुत्र का अज व्याख्यान और जिह्वा छेदने की प्रतिज्ञा कह सुनाई / और कहा कि, जो तूं ने अपने भाई की रक्षा करनी है, तो अजा शब्द का अर्थ मेष अर्थात् बकरी बकरा करना / क्योंकि महात्मा जन परोपकार के वास्ते अपने प्राण भी दे देते हैं, तो वचन से परोपकार करने में तो क्या कहना है ? तब वसु राजा ने कहा कि हे मातानी, मैं मिथ्यावचन क्योंकर चोलं 1 क्योंकि सत्य बोलनेवाले पुरुष जेकर अपने प्राण भी जाते देखें तो भी असत्य नहीं बोलते हैं, तो फिर गुरु का वचन अन्यथा करना और झूठी साक्षी देनी, इसका तो क्या ही कहना है ! तब ब्राह्मणीने कहा कि या तो गुरु के पुत्र की जान बचेगी, या तेरे सत्य व्रत का आग्रह ही रहेगा, और मै भी तुझे अपने प्राण की हत्या दूंगी / तब वसुराजा ने लाचार होकर ब्राह्मणी का वचन माना। पीछे क्षीरकदंबक की भार्या प्रमुदित हो कर अपने घर को गई। इतने ही में मैं ( नारद ) और पर्वत दोनों जने वसुराजा की सभा में गये / तब तहां बडे बडे विद्वान् इकट्ठे सभा में मिले और स्फटिक के सिंहासन ऊपर बैठ के वसुराजा सभा के बीच में सभापति बन कर बैठा। तव पर्वत ने और मैंने अपनी अपनी व्याख्या का पक्ष वसुराना को सुनाया। और ऐसा भी कहा कि हे राजन् ! तूं सत्य कह दे कि गुरु ने इन दो अर्थों में से कौन सा अर्थ कहा था ! तब वृद्ध ब्राह्मणों ने कहा हे राजा / तू सत्य जो होवे सो कह दे। क्योंकि