________________ एकादश परिच्छेद मारे के तिनके मांस का होम करना / तब मैंने पर्वत को कहा-हे माता ! यह व्याख्या तू क्या प्रांति से करता है ! क्योंकि गुरु श्रीक्षीरकदंवकने इस श्रुत की ऐसे व्याख्या नहीं करी है। गुरुजीने तो तीन वर्ष के पुराने धान्यजौ का अर्थ इस श्रुति का करा है। " न जायत इत्यजा"-जो चोने से न उत्पन्न होवें सो अन, ऐसा अर्थ श्रीगुरुजीने तुम को और हम को सिखलाया था। वो अर्थ तुमने किस हेतु से भुला दिया ! तव पर्वतने कहा कि, तुमने जो अर्थ करा है, वह गुरुजीने नहीं कहा था, किन्तु जो अथ मैंने करा है, यही अर्थ गुरुने कहा था, क्योंकि निघंटु में भी अजा नाम बकरी का ही लिखा है। तब मैंने (नारदने) पर्वत को कहा कि शब्दों के अर्थ दो तरे के होते हैं। एक मुख्यार्थ और दूसरा गौणार्थ / तो यहां श्री गुरुजीने गौणार्थ करा था / गुरु धर्मोपदेष्टा का वचन और यथार्थ श्रुति का अर्थ, दोनों को अन्यथा करके हे मित्र ! तूं महापाप उपार्जन मत कर / तब फिर पर्वतने कहा कि अजा शब्द का अर्थ श्री गुरुजीने मेष का करा है, निघंटु में भी ऐसे ही अर्थ है / इन को उल्लंघन करके तू अधर्म उपार्जन करता है / वास्ते वसुराजा अपना सहाध्यायी है, तिसको मध्यस्थ करके इस अर्थ का निर्णय करो। जो झूठा होवे तिसकी जिह्वा का छेद करना, ऐसी प्रतिज्ञा करी / तब मैंने भी पर्वत का कहना मान लिया, क्योंकि सांच को क्या आंच है !